Saturday, May 10, 2014

- हिन्दीमेँ एक मुक्तक यहाँ पे ऐसे-

शंकर निरौला 'निरक्षर'
हिन्दीमेँ एक मुक्तक यहाँ पे ऐसे-

मै सौख से नहीँ मजबुरी से पीता हुँ ॥
मत पुछो, तुम्हारे बगैर कैसे जीता हुँ ॥
तुम्ने तो छोडदिए टुकड़े-टुकड़े करके दिलको
अकेले मैँ ईधर, वो टूटाफुटा दिल सिता हुँ ॥

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